भारत: एक सांस्कृतिक स्थल

भारत एक जमीन का टुकड़ा ही नहीं है अपितु यह 135 करोड़ नागरिकों की आकांक्षाओं की पवित्र-पावन धरा है। भारत का शाब्दिक अर्थ है, भा-प्रकाश रत- सलंग्न अर्थात प्रकाश से भरी भूमि। निश्चित ही प्राचीन काल से ही भारत ने वैश्विक शांति,संवृद्धि और सद्भावना के लिए प्रकाश पुंज का कार्य किया है।

विभिन्न कालखण्डों में भारत पर विभिन्न आक्रांताओं ने आक्रमण किया जिनमें - यवन,शक, हूण, मंगोल,तुर्क,अरबी,अंग्रेज आदि थे।इन आक्रांताओं ने भले ही भारत को आर्थिक रूप से विपन्न कर दिया था परन्तु भारत की सांस्कृतिक,आध्यात्मिक चेतना में तनिक भी विपन्नता नहीं आयी। संस्कृति विविधता से आगे बढ़ती है एक से नही।हमारी संस्कृति ही हमें महान बनाती है। संस्कृति सामाजिक विरासत है,जिसमें परम्परा से पाया हुआ कला-कौशल,वस्तु-सामग्री,यांत्रिक क्रियाएं, विचार, आदतें और मूल्य समावेशित हैं। यही मूल्य भारत को मूल्यवान बनाते हैं।

भौगोलिक रूप से भारत विविधताओं से भरा है,जिस प्रकार हिमालय पर्वत उत्तर में हमारी राजनीतिक सुरक्षा का आधार बना है ठीक उसी प्रकार दक्षिण भारत भारतीय संस्कृति की सुरक्षा का आधार है।

भारतीयता का केंद्र मानव है और मानव चित्त की खेती है संस्कृति। यह चित्त को उर्वर बनाती है और यही उर्वरता हमें विश्व में एक अलग पहचान देती है। आवश्यकता है इस पहचान को जीवित रखने की।

~ शुभांशु साहू

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