कश्मीर से कन्याकुमारी तक स्वच्छ भारत अभियान चले
उठाकर झाड़ू हाथों में सारा हिंदुस्तान चले।
घर में नाली जाम, गली में सीवर लबाबाब भरा हुआ और मुख्य सड़क में गोबर, सड़ी हुई साग सब्जियों के साथ कीचड़ का मिश्रण गज़ब की गन्ध घोल रहा है वातावरण में। तन की बदबू के साथ मन की अस्वच्छता का तालमेल जीवन को नरक बनाने में आमादा है। कौन चाहेगा ऐसा जीवन? कोई नहीं। मगर आज के समय में शहरों में रहने वाली बहुसंख्यक आबादी ऐसा ही जीवन जीने को अभिशप्त है। गांवों में भी कमोबेश ऐसे ही हालात हैं।
प्रधानमंत्री जी ने 2 अक्टूबर 2014 को एक अभियान शुरू किया जिसका नाम था 'स्वच्छ भारत अभियान'। इस अभियान का लक्ष्य था 2019 तक भारत को स्वच्छ बनाना। जिसके तहत देश की समस्त आबादी को ओडीएफ अर्थात् खुले में शौच से मुक्त बनाना था। 2 अक्टूबर 2019 आते-आते येन-केन-प्रकारेण इस लक्ष्य की प्राप्ति भी कर ली जाती है। इसके बाद भी अन्य अभियानों के माध्यम से भी स्वच्छता की अलख जगाई गई समस्त देश में।
स्वच्छता के क्रम में पहला और सबसे ज़रूरी कदम आंतरिक स्वच्छता से शुरू होता है। हमें अपने मन को स्वच्छ रखना होगा तभी हम संवाद कौशल के माध्यम से स्वच्छता में सुधार ला पाएंगे। दूसरा है तन की स्वच्छता और साथ ही उन अभ्यासों को अपने जीवन में उतारना जिससे दूसरे लोग आपके व्यवहार का अनुकरण कर सकें। जैसे- सड़क चलते समय कोई भी अपशिष्ट सार्वजनिक स्थल पर फेंकने से बचना और उस अपशिष्ट को कूड़ेदान या यथोचित स्थान में फेंकना। साथ ही समय समय पर अपने घर की सफाई के साथ ही गली, मुहल्ले या सार्वजनिक स्थलों की सफाई करना; अपने जीवन का हिस्सा बनना चाहिए।
यदि हम इन अभ्यासों को अपने जीवन में आत्मसात करते हैं तो हम स्वच्छता प्रहरी है। लेकिन 'स्वच्छता आभियान' के लिए आवश्यक है जनांदोलन। जनविश्वास से जनभागीदारी आएगी और जनभागीदारी से ही जनअभियान एवं जनांदोलन की शुरुआत होगी। लोगों को यह बताता और समझाना आवश्यक है कि स्वच्छता से स्वास्थ्य और स्वस्थ जीवन मिलेगा जिससे सामर्थ्य आएगा और यही सामर्थ्य समृद्धि, प्रगति और खुशहाली की राह खोलेगा। यूनिसेफ की रिपोर्ट भी यही बताती है स्वच्छता अभियान के कारण ओडीएफ गांव का हर परिवार प्रत्येक साल 50,000 रुपये की बचत करने में सफल हो जाता है क्योंकि वह बीमारी के इलाज में होने वाले खर्चों से बच जाता है और इसके साथ ही ऐसे परिवारों के सदस्यों के बीमार न पड़ने से आजीविका की बचत भी होती है और सामर्थ्य में वृद्धि भी होती है।
हमें लोगों से संवाद और संचार के माध्यम से यह बताना होगा कि उनके जीवन में स्वच्छता का महत्व कितना अनिवार्य है। उन्हें उन अभ्यासों से भी अवगत कराना होगा जो उन्हें भी स्वच्छता प्रहरी बना सकें। गांवों के मध्य स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के माध्यम से स्वच्छता अभियान को गति देनी होगी। पुरस्कार और दण्ड के नियमानुसार भी इसको संचालित किया जा सकता है।
देश की महान हस्तियों और प्रमुख व्यक्तियों द्वारा ऐसे भाषण या गतिविधियां आयोजित करवाई जाएं जो देश को स्वच्छता अभियान से परिचित कराने में सहायक सिद्ध हो। विद्यालयों के स्तर पर भी स्वच्छता का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए। ताकि बच्चें स्वच्छता के महत्व से भिज्ञ हो सकें और उसे अपने मित्रों और परिवार के सदस्यों के साथ साझा कर सकें।
संत गाडगे जो भारतीय स्वच्छता अभियान के जनक कहे जाते हैं उन्होंने कहा कि ‘‘पूजा के फूलों से तो मेरा झाड़ू ही श्रेष्ठ है।" झाड़ू किसी दरिद्रता का सूचक नहीं है, वह तो दरिद्रता को दूर करती है। सनातन धर्म में भी मान्यता है कि जहां स्वच्छता होती है वहां ईश्वर का वास होता है और ईश्वर का वास सुख, समृद्धि और स्वस्थ जीवन का सूचक है।
महात्मा गांधी से लेकर आचार्य विनोबा भावे तक सभी ने स्वच्छता के महत्व को समय समय पर रेखांकित किया। गांधी जी के सत्याग्रह से प्रेरणा लेकर सरकार ने स्वच्छताग्रह की शुरूआत की। सिनेमा की दुनिया में भी 'लगे रहो मुन्ना भाई' से लेकर 'टॉयलेट:एक प्रेम कथा' जैसी दमदार फिल्मों ने भी देश में स्वच्छता की अलख जगाने का कार्य बखूबी किया है।
प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं से स्वयं के हित के लिए एक प्रतिज्ञा लेनी होगी कि 'स्वच्छता का आधार ही जीवन में खुशियों का उपहार' है। तभी हम स्वच्छ्ता प्रहरी बन कर स्वयं के साथ अपने परिवार, समाज और राष्ट्र का हित सुनिश्चित कर पायेंगे।
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